Raghuveer Sharma
72
रसखान रत्नावली (सवैया -18)
है छल की अप्रतीत की मूरति
मोद बढ़ावै विनोद कलाम में।
हाथ न ऐसे कछू रसखान तू क्यों
बहकै विष पीवत काम में।
है कुच कंचन के कलसा न ये
आम की गाँठ मठीक की चाम में।
बैनी नहीं मृगनैनिन की ये
नसैनी लगी यमराज के धाम में।।
Please login to like this post Click here..
Please login to leave a review click here..
Login Please Click here..
Please login to report this post click here..